भद्रा से जुड़ी मान्यता
पं. शर्मा के अनुसार भद्रा के संबंध में कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार भद्रा शनिदेव की बहन हैं। भद्रा का स्वभाव भी शनि की तरह ही क्रूर है। ज्योतिष में इसे एक विशेष काल माना जाता है, इस समय में कोई भी शुभ कर्म शुरू नहीं किया जाता है। शुभ कर्म जैसे विवाह, मुंडन, नए घर में प्रवेश, रक्षाबंधन पर रक्षासूत्र बांधना आदि। भद्रा को सरल शब्दों में अशुभ मुहूर्त कह सकते हैं।
पूर्णिमा पर सत्यनारायण भगवान की कथा करने की परंपरा
हर माह की पूर्णिमा पर सत्यनारायण भगवान की कथा करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। सत्यनारायण विष्णुजी का ही एक स्वरूप है। इनकी कथा में सत्य बोलने का महत्व समझाया है। जो लोग झूठ बोलते हैं, उन्हें कैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ये कथा में बताया गया है। सत्यनारायण भगवान को केले को भोग लगाना चाहिए।
शिवलिंग पर चढ़ाएं जल और करें मंत्र जाप
सोमवार को सावन माह की अंतिम तिथि है। इस दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाकर अभिषेक करें। हार-फूल और पूजन सामग्री के साथ ही बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल विशेष रूप से चढ़ाएं। शिवजी के मंत्रों का जाप करें। मंत्र जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए। धूप-दीप जलाकर आरती करें
कैसे मनाएं रक्षाबंधन?
राखी की थाल सजा लें। जिसमें रोली, चंदन, अक्षत, दही, रक्षा सूत्र यानी राखी और मिठाई रखें। घी का दीपक भी जलाकर रख लें। रक्षा सूत्र और पूजा की थाल सबसे पहले भगवान को समर्पित करें। इसके बाद भाई को पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बिठाएं। भाई के माथे पर तिलक लगाएं। रक्षा सूत्र बांधें और आरती करें। इसके बाद भाई को मिठाई खिलाएं। ध्यान रखें कि राखी बांधने के समय भाई और बहन दोनों का सिर ढका होना चाहिए। इसके बाद अपने बड़ों का आशीर्वाद लें।
राखी का मुहूर्त:
03 अगस्त को सुबह 9.28 बजे के बाद किसी भी समय राखी बांधी जा सकती है। वैसे राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर 01.48 बजे से शाम 04.29 बजे तक रहेगा। दूसरे शुभ मुहूर्त की बात करें तो ये शाम 07.10 बजे से रात 09.17 बजे तक रहेगा। रक्षा बंधन का पर्व रात 09.17 PM तक मनाया जा सकता है।
महत्व:
राखी पर्व से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार एक बार देवताओं और असुरों में युद्ध आरंभ हो गया था। जिसमें देवताओं को हार की स्थिति समझ आ रही थी। तब इंद्र की पत्नी इन्द्राणी ने देवताओं के हाथ में रक्षा कवच बांधा। जिससे देवताओं की विजय हुई। माना जाता है कि यह रक्षा विधान श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर ही शुरू किया गया था।
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