Paryushan Parv wishes 2020
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जैन धर्म में दशलक्षण पर्व का बहुत महत्व है। दशलक्षण पर्व के दौरान जिनालयों में धर्म प्रभावना की जाएगी। दिगंबर जैन समाज में पयुर्षण पर्व/ दशलक्षण पर्व के प्रथम दिन उत्तम क्षमा, दूसरे दिन उत्तम मार्दव, तीसरे दिन उत्तम आर्जव, चौथे दिन उत्तम सत्य, पांचवें दिन उत्तम शौच, छठे दिन उत्तम संयम, सातवें दिन उत्तम तप, आठवें दिन उत्तम त्याग, नौवें दिन उत्तम आकिंचन तथा दसवें दिन ब्रह्मचर्य तथा अंतिम दिन क्षमावाणी के रूप में मनाया जाएगा।
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धर्म के दस लक्षण
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धर्म के दस लक्षण:-
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1.क्षमा;क्रोध मेरी चेतना में पित्त के समान अंतर्दाह देने वाला विकार है .यह आत्मा में क्षोभ पैदा करता हे जिससे अन्दर बाहर सब प्रदूषित हो जाता हे.क्रोध के अभाव में प्रकट होने वाला मेरा सहज स्वभाव क्षमा हे भीतर बाहर जब कोई शत्रु नहीं दिखाई देता तब क्षमाकी अनुभूति होती है .पर(दुसरे)में भूल देखने पर क्रोध उत्पन्न होता हे.जब स्व्यं की भूल समझ में आती हे तब क्षमा भाव उदय होता हे..
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2.मार्दव:मान मेरी चेतना में धनुर्वात टिटनस की तरह अकड़न पैदा करने वाला विकार हे.इसके प्रकोप से मेरी भाव भूमि तो कठोर होती ही हे मेरे सिर गरदन वगैरह अंग भी अकड़ जाते हे मेरा विवेक तिरोहित(मतिहीन) हो जाता हे.मान के अभाव में प्रकट होने वाला मेरा अपना सहज स्वभाव ही मार्दव हे.अहंकार अविद्या का पोषक हे.मार्दव विनय का भंडार हे,विनय से ही स्व पर विवेक उदित होता हे.और आत्मकल्याण का मार्ग प्रकाशित होताहै .मान से विरक्ति ही मार्दव हे!
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.3.आर्जव:-माया मेरी चेतना को गठियावात की तरह पंगु करने वाला विकार है .इसके रहते पवित्रता की दिशा में कदम उठता ही नहीं.जिस प्रकार वात की छाया से चौरासी प्रकार के रोग हो जाते है उसी प्रकार माया के संरक्षण में चौरासी लाख योनियों में भटकने वाले पाप कर्म पनपते है .माया अविद्या की जन्म भूमि,अपयश का घर,पाप पंक की खाईं हे छलकपट इसके बेटे है .जो मुझे सदा दुर्गति की और ढकेलते हे इस दुर्जन परिवार को अन्तर से विदा कर देना ही आर्जव हे.
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4:-शौच:लोभ या लालच मेरी चेतना में कफ की तरह जकड़न पैदा करने वाला विकार है .जैसे कफ मनुष्य के अंतिम् सांस तक कष्ट देता है उसी प्रकार लोभ मुक्ति यात्रा में बहुत दूर तक जीव को त्रस्त करता है .इसकी जकड़न से निकल पाना कठिन है !लोभ के अभाव में प्रकट होने वाला मेरा शुचिता पूर्ण स्वभाव ही शौच हे.लोभ के रहते संतोष का उदय नहीं हो पाता.संतोष के बिना जब तक पर (दुसरे) की लालसा दूर ना हो तब तक मुझे अपने गुणों की सम्पदा का भान नहीं हो पाता हे.शौच के प्राप्त होते ही अनेक गुण स्वत: प्रकट हो जाते है क्योकि लोभ उनको ढके हुए था.
5.सत्यं:-शरीरादि से पृथक् राग द्वेष मानसिक विकारों से पृथक् आत्मा का साक्षात्कार करना सबसे बडा सत्य है !.विश्व की शाश्वत व्यवस्था का अभिज्ञान भी सत्य है .हित मित प्रिय वाणी का प्रयोग सत्य है !.सरल शब्दों में जो जैसा है वैसा रुचिकर कल्याण कारी शब्दों में कहना सत्य हे.अहित कटु अप्रिय वाणी प्रयोग असत्य है !.
6.संयम:- जीव हिंसा रहित तन की प्रवृति,क्रोध मान माया लोभ कषायो से रहित मन की प्रवृति ही संयम है !.संयम के कुल किनारों में बाँध कर प्रवाहित होने पर ही मेरी शक्तियां स्वाधीनता के लिए और लोक कल्याण का सृजनकर सकती है !.
7:तप:-इच्छाओं का निरोध, उनपर अंकुश लगाकर उन्हें शुभ की और प्रवर्तित करना तप हे.मन वचन काय को एकाग्रचित करना तप है !.विषय लोलुपता को त्याग कर ज्ञान ध्यान की आराधना तपहै !.विनय सेवा स्वाध्याय और उपवास तप है !.जिस प्रकार अग्नि ईंधन को भस्म करती है उसी प्रकार तप की अग्नि,कर्मो के ईंधन को भस्म करती है !.
8.त्याग:-आत्मा से अन्य को पराया मान कर ममत्व भाव को तोडना ही त्याग हे.मिथ्या श्रृध्दान, काम, क्रोध , लोभ,माया,मान,तथा हर्ष विषाद ये सभी चेतना को दूषित कराने वाले अंतरंग परिगृह है ! ज़र जोरू जमीन,आदि सभी बाह्य परिग्रह है !.इस प्रकार बाहर से बाँधने वाला परिग्रह चेतन अचेतन परिग्रह अनेक प्रकार के है!जब तक परिग्रह को संभलने में लगा रहूँगा तब तक अपनी (आत्मा )को नहीं संभाल पाऊँगा आत्मा की चर्चा भी प्रलाप लगेगी.दोनों अंतरंग और बाह्य परिग्रह से मोह मूर्च्छा तोडना की त्याग है !
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9.आकिंचन:-समस्त बाह्य आभ्यंतर परिग्रह के मोह को त्याग,क्षमा,मार्दव,आर्जव शौच सत्य आदि निजगुणो सहित अपनी परिपूर्णता का ही आकिंचन हे.आत्मा से अन्य पर में एकत्व की तल्लीनता को त्याग अपने आप में लीन हो जाना आकिंचन है !.
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10 ब्रह्मचर्य:-पर(आत्मा से अन्य चेतन अचेतन) की आसक्ति(वासना) का अभाव प्रकट होने वाला"शील"मेरा अपना स्वभाव हे उसकी आराधना करते हुए अपने शुध्द बुध्द ब्रह्म में रम जाना ,या लीन हो जाना ब्रह्मचर्य है !
Paryushan Parv wishes 2020
paryushan ka aagman hai
dharam dhyan ki rut hai
dharam karo karm ko todo
yahi sandesh duniya ko do
“JEEO AUR JEENE DO”
AHINSA PARMO DHARM”
JAI JINENDRA…….
हम जैन हे, प्यार से मांग लो
‘ जान हाजिर ‘ ।
वरना तलवारों से इतिहास लिखना
हमारी परंपरा हे ।। happy paryushan parv image
जहां पर लोगों का Over Confidence खत्म होता है।
वहां से जैनियों का
Confidence स्टार्ट होता है।
और तान के सीना चलती है।
यह जैन का जंगल है सुनलो,
यहाँ शेरों के साथ जैन शेरनी भी पलती है।।
Royal Jain Status In Hindi
आज 100 में है कल चर्चा हज़ारों में होगी
नाम लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ में है
कल फोटो अखबारों में होगी !!
Jain IS Brand
Satya Ahinsa Dharam Hamara
Navkar Hamari Shan Hai.
Mahavir Jaisa Nayak Paya
Jain Hamari Pahchan Hai.
May this Paryushan Parv brings you happiness and prosperity.
May we all get self-purification and uplift so that we can adhere
the ten universal virtues in our practical life successfully.
Have a blessed Paryushan Parv.
ब मन हुआ इस कातिल दुनिया पे राज करने का तो
ना गोली चलेगी ना तलवार ,
हमारी जूत्ती के निशान देखकर लोग कहेंगे
ये “जैनियों “का साम्राज्य हैं !!
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