माँ शैलपुत्री का मंत्र: माँ शैलपुत्री की पूजा इस मंत्र के उच्चारण से की जानी चाहिए-
ॐ देवी शैल्पुत्र्यै स्वाहा
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पूजा में उपयोगी वस्तु: मां भगवती की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु षोडशोपचार पूजन के बाद नियमानुसार प्रतिपदा तिथि को नैवेद्य के रूप में गाय का घृत मां को अर्पित करना चाहिए और फिर वह घृत ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
पूजा फल: मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य कभी रोगी नहीं होता।
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माता ब्रह्मचारिणी
देवी ब्रह्मचारिणी: ‘ब्रहाचारिणी’ माँ पार्वती के जीवन काल का वो समय था जब वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी। तपस्या के प्रथम चरण में उन्होंने केवल फलों का सेवन किया फिर बेल पत्र और अंत में निराहार रहकर कई वर्षो तक तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है।
माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र: माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना के लिए यह मंत्र है-
ॐ देवी ब्रह्म्चरिण्यै नमः
धादधानापद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
पूजा में उपयोगी वस्तु: भगवती को नवरात्र के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए और ब्राह्मण को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। इनकी उपासना करने से मनुष्य में तप, त्याग, सदाचार आदि की वृद्धि होती है।
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देवी चंद्रघंटा
दुर्गा जी का तीसरा अवतार चंद्रघंटा हैं। देवी के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होने के कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। दअपने मस्तक पर घंटे के आकार के अर्धचन्द्र को धारण करने के कारण माँ "चंद्रघंटा" नाम से पुकारी जाती हैं। अपने वाहन सिंह पर सवार माँ का यह स्वरुप युद्ध व दुष्टों का नाश करने के लिए तत्पर रहता है। चंद्रघंटा को स्वर की देवी भी कहा जाता है।
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप बहुत ही अद्भुत है। इनके दस हाथ हैं जिनमें इन्होंने शंख, कमल, धनुष-बाण, तलवार, कमंडल, त्रिशूल, गदा आदि शस्त्र धारण कर रखे हैं। इनके माथे पर स्वर्णिम घंटे के आकार का चांद बना हुआ है और इनके गले में सफेद फूलों की माला है। चंद्रघंटा की सवारी सिंह है।
चंद्रघंटा देवी की मान्यता
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप सदा ही युद्ध के लिए उद्यत रहने वाला दिखाई देता है। माना जाता है कि इनके घंटे की तेज व भयानक ध्वनि से दानव, अत्याचारी और राक्षस डरते हैं। देवी चंद्रघंटा की साधन करने वालों को अलौकिक सुख प्राप्त होता है तथा दिव्य ध्वनि सुनाई देती है।
माँ चंद्रघंटा का मंत्र
ॐ देवी चन्द्रघन्टायै नमः
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी: तृतीया के दिन भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होनी चाहिए और पूजन के उपरांत वह दूध ब्राह्मण को दे देना उचित है।
विशेष: इनकी उपासना से मनुष्य समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाता है|
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माँ कूष्मांडा
अपनी मंद हंसी से ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली "माँ कूष्मांडा" देवी दुर्गा का चौथा स्वरुप हैं । माँ कुष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। मान्यतानुसार सिंह पर सवार माँ कूष्मांडा सूर्यलोक में वास करती हैं, जो क्षमता किसी अन्य देवी देवता में नहीं है। माँ कूष्मांडा अष्टभुजा धारी हैं और अस्त्र- शस्त्र के साथ माँ के एक हाथ में अमृत कलश भी है।
माँ कूष्मांडा का मंत्र: देवी कूष्मांडा की उपासना इस मंत्र के उच्चारण से की जाती है-
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी: चतुर्थी के दिन मालपुए का नैवेद्य अर्पित किया जाए और फिर उसे योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाए। इस अपूर्व दान से हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाता है।
विशेष: मान्यता है कि माता की उपासना से मनुष्य को व्याधियों से मुक्ति मिलती है। मनुष्य अपने जीवन के परेशानियों से दूर होकर सुख और समृद्धि की तरफ बढ़ता है।
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स्कंदमाता
नवरात्र के पांचवे दिन माँ दुर्गा के पांचवे स्वरुप भगवान स्कन्द की माता अर्थात "माँ स्कंदमाता" की उपासना की जाती है। कुमार कार्तिकेय को ही "भगवान स्कन्द" के नाम से जाना जाता है।
स्कंदमाता का स्वरूप
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं जिनमें से माता ने अपने दो हाथों में कमल का फूल पकड़ा हुआ है। उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती हैं तथा एक हाथ से उन्होंने गोद में बैठे अपने पुत्र स्कंद को पकड़ा हुआ है। इनका वाहन सिंह है।
दुर्गा जी का ममता स्वरूप हैं स्कंदमाता
कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति मना जाता है तथा माता को अपने पुत्र स्कंद से अत्यधिक प्रेम है। जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ता है माता अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश करती हैं।
स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र के साथ जोड़ना बहुत अच्छा लगता है। इसलिए इन्हें स्नेह और ममता की देवी माना जाता है।
माँ स्कंदमाता का मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी: पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।
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कात्यायनी देवी
कात्यायनी देवी दुर्गा जी का छठा अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है।
कात्यायनी देवी का स्वरूप
दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है।
देवी कात्यायनी का मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना|
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि||
पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी: षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।
विशेष: मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।
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देवी कालरात्रि
दुर्गा जी का सातवां स्वरूप कालरात्रि है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें 'शुभंकारी' भी कहते हैं।
देवी कालरात्रि का भयानक स्वरूप
देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ है जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ(गधा) है।
कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा।
शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया।
इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
माँ कालरात्रि का मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः
एकवेणीजपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी: सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
विशेष: मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। माता कालरात्रि पराशक्तियों की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं। मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं।
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माँ महागौरी
दुर्गा जी महागौरी अवतार
शंख और चन्द्र के समान अत्यंत श्वेत वर्ण धारी "माँ महागौरी" माँ दुर्गा का आठवां स्वरुप हैं। नवरात्रि के आठवें दिन देवी महागौरा की पूजा की जाती है। यह शिव जी की अर्धांगिनी है। कठोर तपस्या के बाद देवी ने शिव जी को अपने पति के रुप में प्राप्त किया था।
महागौरा के रुप में दुर्गा जी का स्वरुप
देवी महागौरा के शरीर बहुत गोरा है। महागौरा के वस्त्र और अभुषण श्वेत होने के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है। महागौरा की चार भुजाएं है जिनमें से उनके दो हाथों में डमरु और त्रिशुल है तथा अन्य दो हाथ अभय और वर मुद्रा में है। इनका वाहन गाय है। इनके महागौरा नाम पड़ने की कथा कुछ इस प्रकार है।
महागौरा नाम कैसे पड़ा
मान्यतानुसार भगवान शिव को पाने के लिए किये गए अपने कठोर तप के कारण माँ पार्वती का रंग काला और शरीर क्षीण हो गया था, तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने माँ पार्वती का शरीर गंगाजल से धोया तो वह विद्युत प्रभा के समान गौर हो गया। इसी कारण माँ को "महागौरी" के नाम से पूजते हैं
माँ महागौरी का मंत्र
ॐ देवी महागौर्यै नमः
श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दघान्महादेवप्रमोददा॥
पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी: अष्टमी तिथि के दिन भगवती को नारियल का भोग लगाना चाहिए। फिर नैवेद्य रूप वह नारियल ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इसके फलस्वरूप उस पुरुष के पास किसी प्रकार का संताप नहीं आ सकता। श्री दुर्गा जी के आठवें स्वरूप महागौरी मां का प्रसिद्ध पीठ हरिद्वार के समीप कनखल नामक स्थान पर है।
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माँ सिद्धिदात्री
सर्व सिद्धियों की दाता "माँ सिद्धिदात्री" देवी दुर्गा का नौवां व अंतिम स्वरुप हैं। नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा और कन्या पूजन के साथ ही नवरात्रों का समापन होता है।
सिद्धिदात्रि का स्वरुप
हिन्दू धर्म के पुराणों में बताया गया है कि देवी सिद्धिदात्री के चार हाथ है जिनमें वह शंख, गदा, कमल का फूल तथा चक्र धारण करे रहती हैं। यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता है। इनका वाहन सिंह है। देवीपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी की शक्तियों और महिमाओं का बखान किया गया है।
माँ सिद्धिदात्री का मंत्र:
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः
सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी:नवमी तिथि को भगवती को धान का लावा अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इस दिन देवी को अवश्य भोग लगाना चाहिए।
विशेष:समस्त सिद्धियों की प्राति के लिए मां सिद्धिदात्री की पूजा विशेष मानी जाती है।
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