Ajitnath chalisa अजित नाथ चालीसा , ajitnath bhagwan arti and story
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Ajitnath story
दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी हैं। अजितनाथ जी का जन्म पवित्र नगरी अयोध्या के राजपरिवार में माघ के शुक्ल पक्ष की अष्टमी में हुआ था। इनके पिता का नाम जितशत्रु और माता का नाम विजया था। प्रभु अजितनाथ का चिह्न हाथी था।
अजितनाथ जन्म से ही वैरागी थे, लेकिन पिता की आज्ञानुसार उन्होंने पारिवारिक जीवन और राज्य का दायित्वों का भी वहन किया। कालान्तर में अपने चचेरे भाई को राज पाठ का भार सौंपकर अजितनाथ जी ने प्रवज्या ग्रहण की।
माघ शुक्ल नवमी के दिन उन्होंने दीक्षा प्राप्त की थी। इसके पश्चात बारह वर्षों की कड़ी साधना कर अजितनाथ जी को “केवल ज्ञान” की प्राप्ति हुई थी। धर्मतीर्थ की रचना कर तीर्थंकर पद पर विराजमान हुए। जैन मान्यतानुसार चैत्र मास की शुक्ल पंचमी के दिन ‘सम्मेद शिखर’ (सममेट शिखर) पर प्रभु अजितनाथ जी को निर्वाण प्राप्त हुआ
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जय श्री अजितनाथ जिनराज , पावन चिन्ह धरे गजराज । नगर अयोध्या करते राज , जिनाशत्रू नामक महाराज ।।
वाद विवाद मिटाने हेतु , अनेकांत का बाँधा सेतु । हैं सापेक्ष यहा सब तत्व , अन्योन्याक्ष्रित हैं उन सत्व ।।
सिद्धवर कूट की भारी महिमा , गाते सब प्रभु की गुण गरिमा ।।
विजित किये श्री अजित ने , अष्ट कर्म बलवान । निहित आत्म गम अमित हैं , अरुणा सुख की खान ।।
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